“गीतिका”
“गीतिका”
मृदुता नहिं तापर खार धरो
ममता नहिं वा पर प्यार धरो
मन मान तरो यह बात बड़ी
मरजाद लिए घर द्वार धरो।।
समता अपनी तनि देखि चलो
क्षमता रख ताड़ पहार धरो।।
रखना नहिं भाव सकोच कभी
जँह छाँव भली न दुलार धरो।।
वन बाग बिहान भले कर लो
बिन नेह कहीं न बहार धरो।।
यह बात किसी पल आन पड़े
अफसोस नहीं चित चार धरो।।
दिन ‘गौतम’ रात कहाँ किसकी
हर ठौर न बौर गुबार धरो।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी