गीतिका
गीतिका-22
आधार छंद वास्रग्विणी
०००
सोच
०००
त्याग हठ बात कर, तू जरा प्यार से ।
प्रश्न सुलझें कभी , भी न तलवार से ।।१
०
मत जहर यूँ उगल, विषधरों की तरह ।
जल उठेगा चमन , देख फुंकार से ।।२
०
शब्द ही हैं बहुत , मारने के लिये ।
घाव होते बड़े , शब्द की मार से ।।३
०
गुड़ सरीखा न बन , नीम सा भी नहीं ।
सोच फिर कर पुनः , बात अधिकार से ।।४
०
कब समंदर बुझा, पा सका प्यास को ।
प्यास बुझती सदा , शैलजा धार से ।।५
०
देख तो फागुनी ,रंग बिखरे पड़े ।
है मजा जीत से, या बता हार से ।।६
०
जब उजाला न दे, सोच आनंद तो ।
‘ज्योति’ मिलता वही, घोर अँधियार से ।।
०००
महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
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