गीता अध्याय प्रथम
प्रथम अध्याय*
खड़े हुए जब रणभूमि में, शूरवीर दोऊ ओर।
शंख, नगाड़ों , ढोल का, शोर हुआ घनघोर।।
शोर हुआ घनघोर ,चहुं दंदुभियां रण की बाजें।
लिए शस्त्र धनुर्वाण स्वजन को मारन काजें।।
अश्व श्वेत हैं उत्तम रथ,लगाम हाथ श्रीकृष्ण।
ताहि रथ अर्जुन खड़े , लेकर हृदय विदीर्ण।।
लेकर हृदय विदीर्ण, सोचते प्रभु कैसी माया।
जो हैं मेरे बंधुजन , मैं उन्हीं को मारन आया।।
बजा रहे पांच्यजन्य कृष्ण, देवदत्त अर्जुन निपुण।
पोण्ड्र बजावें भीमसेन,अनंत विजय श्री युधिष्ठिर।।
सुघोष बजाया नकुल ने, मणिपुष्पक शंख सहदेव।
पांचों सुत द्रोपदी,सुभद्रा अभिमन्यु,शंख अनेकानेक।।
शब्द हुआ घनघोर, गूंजते धरती और अम्बर।
डटे वीर दोऊ ओर , परस्पर युद्ध को तत्पर।।
सगे बंधु और बांधव,खड़े देख हृषिकेश।
बोले अच्युत!अर्ज है!
अभिलाषी जो युद्ध के मैं देखूं उनके वेश।।
देखूं उनके वेश, जान लूँ , युद्ध है किससे करना।
खड़े कौन रणक्षेत्र में,बध किस-किस का करना।।
किस-किस से करना योग्य है, युद्ध मुझे श्रीकृष्ण।
तीक्ष्ण वाणों से होंगे किसके , हृदय आज विदीर्ण।।
सुन विचार श्री कृष्ण किया,रथ रणक्षेत्र के बीच।
बोले ,सुन हे पार्थ! देख ले मैं रथ ले आया खींच।।
रथ ले आया खींच, देख हे अर्जुन! युद्धाभिलाषी।
खड़े हैं दोनों ओर , पराक्रमी,वीर, योद्धा,साहसी।।
देख युद्ध के लिए जुटे सब,कौरव बंधु-बांधवों को।
दादा-परदादा, गुरुओं, चाचा-ताऊ, पुत्रों-पोत्रों को।।
देख स्वजन समुदाय सभी, शोक कर अर्जुन बोले।
हे केशव! मुख सूख रहा,अंग शिथिल लगे हैं होने।।
कांप रही यह देह, त्वचा भी लगती है जलती सी।
भ्रमित हुआ यह मन, प्रभु ,यह कैसी गलती की।।
नहीं चाहिए विजय राज्य ,ना ही है मुझे चाह सुखों की।
जिनको अभीष्ट सुख ,वैभव,खड़े छोड़ आस जीवन की।।
हे मधुसूदन!
नहीं मार सकता मैं इनको, तीनों लोक मिलें जब भी।
मार सगे सम्बंधी बांधव, क्या तब हमें प्रसन्नता होगी।।
भ्रष्ट चित्त हो लोभ वश ,न दिखे हानि हैं अभिमानी !
बिना विचारे खड़े हुए हैं, पुत्र-पितामह, गुरु-ज्ञानी।।
वे सब नहीं देखते कृष्ण,कुलधर्म नाश से उत्पन्न दोष।
नाश हुआ कुल धर्म तो,फैलेगा कुल पाप नीतिगत रोष।।
बढ़ जाएगा पाप, स्त्रियां दूषित होंगी तब हे मधुसूदन !
तर्पण से वंचित पुरखे होंगे, होगी अधोगति हे जनार्दन !
हाय शोक बुद्धिमान होकर हम ,महान पाप को तत्पर।
मात्र राज्य सुख लोभ वश,मारूं उन्हें क्या? दीजिए उत्तर।।
ये रखा धनुष-बाण! नहीं मैं युद्ध न अब कर पाऊंगा।
यदि वे मारें मार दें मुझे, नहीं मैं युद्ध न कर पाऊंगा ।।
प्रथम अध्याय समाप्त,🌹🙏🌹
मीरा परिहार ‘मंजरी’