गिलोटिन
फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान
वह गिलोटिन
न जाने कितनों को सँहारे,
वो भी भेंट चढ़ गए
जो बिल्कुल निर्दोष थे बेचारे।
तब दो जोरदार चीखें
हमेशा एक साथ निकलती
जो बहुत दूर तक
सन्नाटे को चीरकर गूंजती,
पहली चीख
मशीन की सुनाई देती,
दूसरी चीख गर्दन कटने वाले
इंसान की सुनाई देती।
गिलोटिन ने
अपने आतंक का डंका
पूरे राज्य भर में बजाया,
मगर बाद में वही यंत्र
अपने अविष्कारक
डॉ. गिलोटिन की गर्दन
काटने में भी
बिल्कुल नहीं हिचकिचाया।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति