गिर गिर कर हुआ खड़ा…
ऐ जिंदगी, तू लोगों से
इम्तिहान क्यों लेती है
जिनकी उम्र अदक्षता की
उससे बेगारी क्यों करवाती है
जो दो दिन से कुछ खाया ना हो
उससे जाके पूछिए ‘जनाब’
कि भूख क्या होती हैं !
विघ्नों को जो चीर चीर कर
छूता नित नए ऊंचाइयों को है
जो फिसलने के बाद भी
गिर गिर कर फिर से उठता
वही रचता इतिहास भव में
उसी की होती जय जगत में…
गिर गिर कर हुआ खड़ा
अब गिरने का ख्वाब नहीं…
ऐसे ख्वाब थे कई हमारे
पर, ऐ हयात तुमने तो
इतना अरसा ही ले लिया
कि ख्वाब, ख्वाब रहे ही नहीं
सारे ख्वाब और ख्वाहिशें
हमारी पूर्ण सी हो गई !
मिली, ऐसे ही सफलता नहीं
इसके लिए क्या से क्या झेलें हैं
तब जाकर हमने यह दिन देखे हैं
गिर गिर कर हुआ खड़ा
अब गिरने का ख्वाब नहीं…
लेखक:- अमरेश कुमार वर्मा (बेगूसराय, बिहार )