गिद्ध और लाशें
कल सांय एक गिद्ध
मेरी छत के बुर्ज पर बैठा
ख़ून का आंसू बहा रहा था
थका-हारा
अभी -अभी उतरा था वह
सुदूर आकाशीय सफ़र से
शायद –
‘भुज’ से आया होगा?
यही सोच कर मैं
उसकी रक्तरंजित
आँखों में झाँका और
देखा
हर्ष की जगह
भयानक उदासियाँ
उड़ीसा और लातूर के साथ
गुजरात में पसरा
मौत का सन्नाटापन
ढही-बिखरी
बहुमंज़िली इमारतें
और उन इमारतों के बीच
सिसकियाँ भरती हुईं
ज़िंदा लाशों की ढेर
और उन ढेरों पर
टूटते-झपटते हुए
वर्दीधारी /खद्दरधारी
ढेर सारे कुत्ते
और भेड़ियों का झुण्ड।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”