गाल छूने को मन करता है
गाल छूने को मन करता है
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छोर छूने को मन करता है,
भोर छूने को मन करता है।
देख कर भोली सूरत को,
गाल छूने को मन करता है।
तेज माथे पर जब से देखा,
पांव छूने को मन करता है।
मै फलक पर देखूँ परछाई,
छाँव छूने को मन करता है।
है बसी मन मंदिर मनसीरत,
द्वार छूने को मन करता है।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)