गांव छोड़ब नहीं
सुना है सरकार ने हाईवे निर्माण का मन बनाया है,
बड़ी बड़ी कंपनी को गांव में सेटअप करने के लिए।
मगर, उन लोगों का क्या जो वहां रहते है
जिन्होंने परिश्रम से सपनों का आश्रय बनाया है,
और जिनका श्रोत खेती है
जिनका जीवनकाल उस मिट्टी में गुजरा है।
उनकी जमीन पर अब ये बड़े लोग मुनाफा कमाएगे
और गांव के लोग अब बेघर हो जाएंगे।
बचा कुचा नाम गांव का,
अब शहरी सुंदरीकरण में बदल दिया जाएगा।
जो बरसों का वट वृक्ष था वहां,
वो भी अब इन्फ्रास्ट्रक्चर में रौंद दिया जाएगा।
लहराते खेत, ताजी हवा से मन जहां शांत होता था,
सरकार की ख्वाहिशों से
आज वो पूरा गांव खाली कर दिया जाएगा।
ये कैसी तरक्की है? ये कैसा न्याय है?
जिसमें पैसा लोगों पर ना खर्च करके,
हाईवे बनाकर कंपनीज को लुभाने में किया जा रहा।
एक खुशहाल गांव की चिता जला
कामयाबी की सीढ़ी चढ़ रही देश की उन्नति।
“दर्द की अब दरखास्त यही है, कि सुख जाए गम का पसीना।”
~ Silent Eyes