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20 Jan 2025 · 1 min read

सुहाना बचपन

सोचती हूं बैठे बैठे क्यों मैं हुई बड़ीं, कितना सुहाना था बचपन क्यों आंख किसी से लड़ी ।

चांद सितारे, पंछी बादल लगते ते सब प्यारे -प्यारे, शादी करके पिहर घर क्या आई, मां- बाप भी हुए पराए।

सुबह-शाम कोई गम ना था, खेलना सोना बस यही काम था, अब ऐसा लगता है, ये कोई सपना तो नहीं था। मां का प्यार, बाबा का दुलार, बहुत याद आती है, बचपन कि कहानियां क्या कोई लौटा सकता है, बचपन की वो गलियां।

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