गांधी जी पर पांच कविताएं
गाँधी जी पर पाँच कविताएं
1- गांधी की लाठी
मजबूती से लाठी पकड़े
चलते सीना तान कर।
प्यारे बच्चों गर्व करोगे
गांधीजी को जानकर।।
ठक-ठक लाठी से ठरकाए
द्वार बंद अंग्रेजों के।
उनकी लाठी से सिर झुकते
बंदूकों और नेजों के।।
निर्भय होकर आगे बढ़ते
अभय तोप के गोलों से।
तेज कटारें सीख गई कि
कभी न निकलें झोलों से।।
शांति दूत गांधीजी ने ही
हिंसा से इनकार किया।
सत्य अहिंसा की नीति ने
आदर और सम्मान दिया।।
आजादी की अलख जगाने
लाठी लेकर निकल पड़े।
सारे भारतवासी उनके
पीछे पीछे हुए खड़े।।
सीख गई दुनिया सारी
अहिंसा की पाटी को।
आजादी ने आंखें खोली
नमन संत की लाठी को।।
2- दांडी मार्च
बारह मार्च उन्नीस सौ तीस
गांधी ने हुंकार भरी।
लूण नियम को चले तोड़ने
गौरों की सरकार डरी।।
चुने अठहत्तर साथी अपने
झोला लेकर निकल पड़े।
गांव-गांव और चौराहों पर
कृषक हजारों मिले खड़े।।
चल दिए मिलने सागर से
साबरमती धाम से।
आजादी की बातें करते
लाखों की आवाम से।।
सत्याग्रह की रणनीति ने
गौरों को पहुंचाई चोट।
आजादी के दीवानों के
बढ़ने लगे देश में वोट।।
दिन पच्चीस में पूरी कर ली
दूरी थी ढाई सौ मील।
नमक हमारा देश हमारा
नहीं मिली गौरों को ढील।।
छ अप्रैल उन्नीस सौ तीस
पूर्ण हुआ आंदोलन एक।
समझ गए भारतवासी कि
देंगे गौरे घुटने टेक।।
3- गांधी और अनुशासन
अनुशासन जिसने अपनाया,
उसका बेड़ा पार है।
गांधी कहते हैं अनुशासन,
जीवन का आधार है।।
आफत ही सिखलाती है
पाठ हमें अनुशासन का।
जिसने झेली घोर विपत्ति
ज्ञान उसे अनुशासन का।।
अनुशासन के बल पर जीते
युद्ध हमेशा वीरों ने।
हारे संयम बिना धुरंधर
प्राण हर लिए तीरों ने।।
संयम रखना बहुत जरूरी
जीवन जैसी जंग में।
अनुशासित मानव रंग जाते
खुशियों के हर रंग मे
संयम और अनुशासन के बल
आजादी मिल पाई है।
गांधी ने अनुशासन के हित
सच की महिमा गाई है।।
पढ़ना-लिखना खेल-कूदना
अनुशासन का हो पालन।
गांधी जी कहते हैं दुनिया
करेगी अपना अभिवादन।।
4- गांधी की ऐनक
ऐनक पहने देख रहे थे
सपना जो आजादी का।
बदल रहे थे सच में सपना
भारत की आबादी का।।
गांधीजी की दूरदृष्टी से
संभव था भारत आजाद।
वरना तो अंग्रेज देश में
सदियों तक रहते आबाद।।
जज्बा उनमें देश प्रेम का
भरा हुआ गहराई तक।
अंग्रेज हुकूमत छू नहीं पाई
गांधी की परछाई तक!!
एक फ्रेम में बांध लिया था
भारत देश महान को।
कभी नहीं भूलेगा भारत
ऐनक की पहचान को।।
बापू की मेहनत के बल को
देख रहे भारतवासी।
मुक्त हो गया देश हमारा
हर घर है काबा काशी।।
ऐनक उनकी बड़े काम की
आँखों को देती आराम।
बहुत मान से भारतवासी
लेते हैं गांधी का नाम।।
5- कर्मनिष्ठ बापू
आशाओं के अमर उजाले
सत्य अहिंसा जिसके साथ।
आजादी की लाठी पकड़े
नित्य कर्मरत जिसके हाथ।।
नमन करें हम भारतवासी
विश्व नवाए जिसको शीश।
मातृभूमि के लाल लाड़ले
कोटि कंठ देते आशीष।।
सत्याग्रह के पंथ चले वो
जीत लिया आजादी को।
बहुत भरोसा बापू पर था
भारत की आबादी को।।
कर्मठ मानव ही सक्षम है
दुर्गम पथ पर बढ़ने में।
सतत कर्म और संयम दोनों
लगते सच को पढ़ने में।।
बहुत जरूरी वर्तमान में
गांधीजी के पाठ सभी।
उनके पथ पर चलते जाएं
खुल जाएंगी गांठ सभी।।
विमला महरिया “मौज”
सीकर, राजस्थान
स्वघोषणा
प्रकाशनार्थ प्रेषित पांचों कविताएं मेरी स्वरचित हैं।