गाँव की गलियां
गांव की गलियां संकरी हैं ,पर चौड़ी सड़कों से बेहतर है।
यहाँ प्राणवायु की कमीं नही ,है बहती हवा सरसर है।
ऊँची बिल्डिंग के ऊँचे लोगों ,क्या तुमको ये पता भी है,
यहां लोग जुड़ें है एक दूजे से,एक घर से जुड़ा दूजा घर है।
सुख – दुख की हर एक घड़ी में साथ निभाते रहते हैं।
छोटी मुसीबत पर कितनो को आवाज लगाते रहते हैं।
यहाँ रहने वाले लोग ,एक दूजे के सच्चे रहबर हैं।
गांव की गलियां संकरी हैं ,पर चौड़ी सड़कों से बेहतर है।
यहाँ हर त्योहार में रहता है ,हर घर में उल्लास सदा।
तुम त्योहार भी मनाते हो , यहाँ -वहाँ और यदा -कदा।
यहाँ हर एक व्यक्ति के सुख दुख पर ,लोगों की पैनी नजर है।
गांव की गलियां संकरी हैं ,पर चौड़ी सड़कों से बेहतर है।
विनती है उस ईश्वर से ,पीपल बरगद की छांव मिले।
गर फिर आऊँ इस धरती पर, फिर से मुझे एक गांव मिले।
प्रकृति को संजोया अब तो , गाँव का घर – घर है।
गांव की गलियां संकरी हैं ,पर चौड़ी सड़कों से बेहतर है।
– सिद्धार्थ पाण्डेय