ग़म का दरिया
गम का दरिया धीरे धीरे
नस नस मे उतार रहा हूँ
तुमसे तो मै हारा ही था
खुद से भी अब हार रहा हूँ ।
लम्हा लम्हा वाकिफ है
उन दर्द भरे अल्फ़ाजों से
सदियों के पन्नो पर हर पल
लिखता तेरा नाम रहा हूँ ।
फ़ासलों से मेरी नाराजगी
यूं ही नहीं है बे-वजह
जब मिले साहिल पे तुम
मै खड़ा उस पार रहा हूँ ।