ग़ज़ल
नीलगगन जो छाया-छाया होता है ।
धरती ने वो बोझ उठाया होता है ।
भावनाएँ तो मिलती हैं पूरी लेकिन,
थोड़ा-सा संकोच हटाया होता है ।
ख़ुद का साया तेरे पीछे है फिर भी,
पीछे-पीछे और भी साया होता है ।
तेरा चलना, उठना, रोना,गाना सब,
पहले से ही बना-बनाया होता है ।
जो बंदूक रखे है अपने कंधे पर,
उसका मन भी डरा-डराया होता है ।
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी ।