‘ग़ज़ल’
212 212 212 212
चाह मन में न हो याद आया न कर।
बे वजह देख हमको सताया न कर।।
आज फेरी निगाहें सरी राह में-
इस तरह भी हमें तू भुलाया न कर।
वक्त दे ना सके तू किसी को अगर-
तो उसे घर कभी भी बुलाया न कर।
है जमाना बुरा आजकल तो बहुत-
राज अपना किसी को बताया न कर।
इश्क हम से तुझे हो कि चाहे न हो-
गैर से इश्क अपना जताया न कर।
मुश्किलें तो बहुत हैं बता क्या करें-
सोचकर बात दिल को दुखाया न कर।
है अभी ग़म खुशी भी मिलेगी कभी-
अश्क दिन-रात तू यूँ बहाया न कर।
-गोदाम्बरी नेगी