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17 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

राग बसंती सुंदर बजता साँझ लगे सिंदूरी है।
माँ वसुधा को महकाने की अब तैयारी पूरी है।।

शोभा बगिया की बन आई सुंदर अद्भुत न्यारी सी-
सच है यह पर मुझ को लगती बिन सरताज अधूरी है।

कलियाँ शरमा कर हैं खिलती इत उत भौंरे भी उड़ते-
साजन मिलने को आजाओ ऐसी क्या मजबूरी है।

धरती से नभ भी मिलता है दूर क्षितिज में झुक झुकके-
हिरणों सा चंचल मन भागे ढूँढ रहा कस्तूरी है।

राह निहारे बैठे कब से अब संध्या आने वाली-
चाहे मन तुमसे जब मिलना क्यों बढ़ जाती दूरी है।

गोदाम्बरी नेगी

©️®️

Language: Hindi
1 Like · 204 Views
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