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15 Jul 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

‘क्या यही प्यार है’

काफ़िया-गी
रदीफ़-देखो
वज़्न-1222 1222 1222 1222

लुटाते प्यार ख़्वाबों में सनम की दिल्लगी देखो।
समंदर अश्क में डूबा बुझे न तिश्नगी देखो।

किया सजदा मुहब्बत में ख़ुदा माना जिसे हमने
उसी ज़ालिम फ़रेबी ने मिटादी ज़िंदगी देखो।

शिकायत क्या करूँ ए दिल मुहब्बत का तक़ाज़ा है
चिरागे याद से अपनी मिटाती तीरगी देखो।

मुझे वो ढूँढ़ लेता है सताता नित ख़्यालों में
चला आता बिना आहट किए आवारगी देखो।

मसल्सल चल रही साँसें उसी का ज़िक्र करती हूँ
जिसे मैं भूलना चाहूँ उसी से नग्मगी देखो।

रुलाता दर्द आँखों को ज़माना तेंग कसता है
बरसते मेघ जा परदेस क्यों नाराज़गी देखो।

रक़ीबों से निभा उल्फ़त ग़मे शाबाद करते हैं
चुकाती कर्ज़ ‘रजनी’ है लबों की ताज़गी देखो।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

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