ग़ज़ल
मिटाओ भेद के बादल खिलाओ प्यार के गुलशन
लगे ये ज़िन्दगी ऐसी सजी जैसे कोई दुल्हन/1
किसी नीरस फ़साने को नहीं सुनता यहाँ कोई
कहानी वो कहो जिसके हृदय में बस बसे चंदन/2
मुहब्बत को तिज़ारत की तिजोरी मत समझ ग़ाफ़िल
बनाए ये रुहानी हर न टूटे जो कभी बंधन/3
तेरी हर बात समझूँ मैं मेरी हर बात समझे तू
अगर तू आँख है तो मैं बना तेरे लिए अंजन/4
करो हर काम दिल से तुम बड़ा परिणाम फिर देखो
सभी का सुन जिसे सच में रहेगा मन यहाँ रंजन/5
बुरा हर काम जीवन में क़यामत राह खोलेगा
जहाँ हो रात कैसे वो उजालों से खिले आँगन/6
किसी के गीत बन जाओ किसी के मीत बन जाओ
लगेगी देखिए ‘प्रीतम’ धरा हरपल यही पावन/7
आर. एस. ‘प्रीतम’
शब्दार्थ- फ़साना- किस्सा, तिज़ारत- व्यापार, ग़ाफिल-पागल, अंजन- काजल, रंजन- प्रशन्नता,