*ग़ज़ल*
ग़ज़ल
कभी कोई निराशा आ सताए तो करें हम क्या
करेगा रब नहीं वश में हमारे जो करें हम क्या/१
करें हम कोशिशें हरपल हमारे हाथ में जो हैं
जिन्हें कर हम नहीं सकते भुला दें वो करें हम क्या/२
समय की धूप जानो वक़्त पर ही छाँव देती है
समय पहले नज़ारा और भूलें रो करें हम क्या/३
आर. एस. ‘प्रीतम’