ग़ज़ल
तेरी यादें संभाल रक्खा हूं
दर्द दिल में ही पाल रक्खा हूं
ज़िंदगी बिन तेरे अधूरी है
ख़ुद को ख़तरे में डाल रक्खा हूं
जैसे चाहो मेरी परीक्षा लो
रूह अपनी निकाल रक्खा हूं
मेरे अंदर भी मैं नहीं तुम हो
यूं तुम्हें ख़ुद में ढाल रक्खा हूं
बंद रस्ते हज़ार हो जाए
एक रस्ता “नेहाल” रक्खा हूं
– संदीप गांधी नेहाल