ग़ज़ल 4
मौत की नींद सो गईं आँखें
अपनी हस्ती डुबो गईं आँखें
उसने जब प्यार से मुझे देखा
कितने सपने सँजो गईं आँखें
रात फिर ख़्वाब में वो आया था
मेरा तकिया भिगो गईं आँखें
जो मनाज़िर सफ़र में देखे थे
उनकी रंगत में खो गईं आँखें
मुद्दतों बाद जब मिले उनसे
उनका दामन भिगो गईं आँखें
दोनों रोने लगे गले मिलकर
सारे शिकवों को धो गईं आँखें
खुल के हँसना ‘शिखा’ न हो पाया
हँसते हँसते भी रो गईं आँखें