ग़ज़ल
ग़ज़ल
तन्हाई में शहर बनाया करता है
कागज का जो फूल बनाया करता है
कैसा पागल दीवाना है रातों में
दीवारों को दर्द सुनाया करता है
अपनी ही बातों पर वो रो देता है
फिर खुद को ही आप हंसाया करता है
पागलपन हावी है उसपर ऐसा ही
नाले को गंगा बतलाया करता है
अपनी ज़िद पर अड़ा हुआ है देखो वो
वक्त की सिलवट को सुलझाया करता है
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़