ग़ज़ल
ग़ज़ल
हसनैन आक़िब
तेरे नज़दीक ही बैठा हूं मैं ।
लोग कहते हैं कि तन्हा हूं मैं ॥
उस के माथे पे शिकन आई है
उस ने देखा है कि अच्छा हूं मैं ॥
कोई क्या कहता है इस को छोड़ो
फ़ैसला तुम करो, कैसा हूं मैं ॥
ज़िन्दगी कुछ भी नहीं तेरे बगै़र
बस इसी बात को समझा हूं मैं ॥
सोच कर इश्क़ नहीं होता कभी
कल कहा, आज भी कहता हूं मैं ॥
तुझ को पाने में जो नाकाम रहूं
बस यही सोच के डरता हूं मैं ॥
दिल में एक टीस उठी है आक़िब
अब भी उस को नहीं भूला हूं मैं ॥