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10 Jun 2023 · 1 min read

ग़ज़ल 21

नफ़रत की आग जलने लगी तेरे शहर में
ये बात आज खलने लगी तेरे शहर में

जो आश्ना थे कल मेंरे सब गुम कहाँ हुए
हिजरत की चाह पलने लगी तेरे शहर में

मरने का मारने का ये क्या दौर आ गया
जीने की आस टलने लगी तेरे शहर में

मेरा यहाँ से ठौर-ठिकाना उजड़ गया
आँधी अजीब चलने लगी तेरे शहर में

क़ुदरत ख़फ़ा हुई न कहीं लाए ज़लज़ला
करवट ज़मीं बदलने लगी तेरे शहर में

काली घटा की क़ैद में वो कब तलक रहे
अब चाँदनी मचलने लगी तेरे शहर में

हर दिल में कौन भरने लगा दुश्मनी ‘शिखा’
शफ़क़त भी हाथ मलने लगी तेरे शहर में

1 Like · 432 Views
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