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13 May 2024 · 1 min read

ग़ज़ल-समय की ताल पर

किसलिए हँसते हो मेरे हाल पर
नाचते हैं सब समय की ताल पर

इश्क़ ने ला कर कहाँ पटका मुझे
अब ग़ज़ल होती है आटे दाल पर

बद्दुआ मत ले किसी लाचार की
वक़्त जड़ देगा तमाचे गाल पर

फूल हो कोई भी टूटेगा ज़रूर
कौन सा बाक़ी रहा है डाल पर

ये किसी सैय्याद का हामी नहीं
तोहमतें लगती हैं लेकिन जाल पर

साथियो लीडर हमारे बिक चुके
किसलिए बैठेंगे वो हड़ताल पर

आपने वो पेड़ भी छोड़े नहीं
घर परिन्दों के थे जिनकी डाल पर

क़ातिलों के हक़ में आया फैसला
उंगलियाँ उतनी ही थी पड़ताल पर

अपने मोहरों को बचा लेता हूँ मैं
हैं सभी हैरान मेरी चाल पर

Language: Hindi
1 Like · 14 Views
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