ग़ज़ल में है
मत पूछिए क्यों कर इकारा ग़ज़ल में है
वो जानते है जिन्हें उकेरा ग़ज़ल में है
ऐब-ए-शुतुरगर्बा हो गर बे-नजर ऐब से
फ़िर तो ख़सारा हि ख़सारा ग़ज़ल में है
उसके नाज़ की तरह रंग शेरों के मुतग़ाइर
शीरीं है कहीं और कहीं खारा ग़ज़ल में है
कहने को तो बहुत कुछ पर कहूँ क्या उसपे
अदबी अदबी सी वो ख़ुद-आरा ग़ज़ल में है
अपने आप नहीं चमक पड़े ख़्याल ओ मे’यार
खूॅं थूक मश्क़-ए-सुख़न पे सॅंवारा ग़ज़ल में है
रिश्तें नाते दोस्त यार ख़ैर-ख़्वाह सब बातिल
जरूरत पड़ते सबने किया किनारा ग़ज़ल में है
मुझे पढ़ कर मिरा ज़ैग़म पूछते हो जो साहिब
सरकार के सामने सरकार को नकारा ग़ज़ल में है
क़ैफ़ियत में रंज अजाब मौत के अलावा क्या कहूँ
ख़बर नइ तुम्हें मिरे गर्दिश का सितारा ग़ज़ल में है
मिरे मुहब्बत में कभी रूह बदन का मसला नइ कुनु
जब जब चाह हुई इश्क को इश्क पुकारा ग़ज़ल में है