ग़ज़ल: मुझे बहकाने लगी है ।
ग़ज़ल: मुझे बहकाने लगी है ।
// दिनेश एल० “जैहिंद”
जब से खामोशियाँ मुस्काने लगी हैं,
मेरी कुछ ख्वाहिशें सुगबुगाने लगी हैं ।
अब तलक मोहब्बत से अनजान था मैं,
तेरी मुस्कान मुझे बहकाने लगी है ।
मुझ परिंदे को इश्क़ की हवा लगी के,
तेरी उलफ़त धड़कन बढ़ाने लगी है ।
इश्क़-सा मज़ा कहीं और नहीं है यार,
मेरी अक्ल नादां अब मनाने लगी है ।
दिल में दिल का घरौंदा बनाके देख तो,
बारहा दिल को वो समझाने लगी है ।
“जैहिंद” इश्क़ में डूब के खुदा मिलेगा,
उसकी आशिकी मुझे बतलाने लगी है ।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
06. 06. 2017