ग़ज़ल- नींद मेरी चुराकर- राना लिधौरी
ग़ज़ल- नींद मेरी चुराकर..
नींद मेरी चुराकर ख़ुद कहीं पे सो गया।
और मेरे मन के अन्दर बीज़ ग़म का बो गया।।
जिसके कारण दिल में जलते थे मुहब्बत के चिराग़।
क्यों उसी के वास्ते मैं ग़ैर जाने हो गया।।
क्या ख़ता हम से हुई जो आज वो।
तोड़कर दिल दे के ग़म हम को गया।।
इस जहां में जाके अपना हाल अब किससे कहे।
उसने नज़रें फेर ली है बेवफ़ा वो हो गया।।
यूं तो “राना” भीड़ है हर शहर हर गांव में।
उसके आंखें फेरते ही मैं तो तन्हा हो गया।।
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© राजीव नामदेव “राना लिधौरी”,टीकमगढ़
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
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