ग़ज़ल-जितने घाव पुराने होंगे
जितने घाव पुराने होंगे
उतने दर्द सयाने होंगे
हँसने और हँसाने वाले
पागल या दीवाने होंगे
जाल वहीं पे लाज़िम समझो
जहाँ जहाँ भी दाने होंगे
खंजर तो कोरा कागज़ है
पहने वो दस्ताने होंगे
दर्द कहाँ अब नए मिलेंगे
सब जाने पहचाने होंगे
मैं कोई सुकरात नहीं हूँ
फिर भी ज़हर पचाने होंगे
काँटों के आँसू भी शायद
फूलों के अफ़साने होंगे