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1 Mar 2017 · 1 min read

ग़ज़ल (चल रही…..

ग़ज़ल

चल रही फिर से सुरभित।
वही चंचल पवन सुहानी है

जिसकी तारीफो को रहती।
हर कवि की कलम दिवानी है।

मधुमास हर फूल हर कोंपल पर।
नवतारिका सी छायी जवानी है।

यौवन प्रस्फुटित कलिकाओ पर।
भ्रमर गुंजन अजब लुभावनी है।

पूर्ण श्रृंगारित कलिकाओ पर।
कुदरत की ही मेहरबानी है।

सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड

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