गवाही
वक्त ने अपनी
छाती पर अनेक दंश
झेले
एक से बढ़ कर एक
अनहोनियों को
देखे।
फिर भी अनवरत
अपने सफर पर
अबाध
चलता रहा
पर पता नही क्यो
आजकल लग रहा
ठहरा हुआ।
जन्म के साथ ही
हमारे हर स्वास
प्रश्वास पर
परमात्मा का
हस्ताक्षर हो जाता है
फिर भी हर सख्स
अमर होने की
चाह रखता है
समय निरापद
अपनी मस्ती में चलता
चला जाता है
एक दिन हमे भी
श्मसान पर छोड़
वह आगे
बढ़ जाता है।
पर आज वह
स्वयं ही एक ऐसे
अप्रिय मंजर का दंश
कोरेना के कारण
अपनी छाती पर
झेल रहा
एकदम से बेबस
लग रहा
जिसके अंत का
निर्मेष
दीखता कोई जरिया
ही नही
शायद समय को
स्वयम ही
अपने स्तित्व का
पता नही।
इस सृष्टि पर आज
बन आयी है
समय की अदालत में
समय के द्वारा ही
अब समय की
गवाही है
शेष सब मनाही है।