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30 Dec 2022 · 3 min read

महाराजा अग्रसेन, प्राचीन अग्रोहा और अग्रवाल समाज

महाराजा अग्रसेन, प्राचीन अग्रोहा और अग्रवाल समाज
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आज से लगभग पाँच हजार साल पहले महाराजा अग्रसेन अग्रोहा के महान शासक थे। दिल्ली के निकट अग्रोहा की स्थापना आपने ही की थी । आप के राज्य में सब सुखी थे तथा समृद्धि थी ।आप प्रजा को पुत्रवत मानते थे तथा आपका सारा जीवन प्रजा की भलाई के लिए ही बीता।
अग्रोहा में सामाजिक समानता के लिए आपने बहुत कार्य किया। सबसे प्रमुख कार्य अग्रोहा की जनता को एक सूत्र में बाँधने के लिए तथा सब प्रकार से जन्म पर आधारित भेदभाव को मिटाने के लिए आपने अग्रोहा के संपूर्ण समाज को अठारह भागों में विभक्त करके उन्हें अठारह गोत्र- नाम प्रदान किए। इस कार्य के लिए अठारह बड़े भारी यज्ञ आपके द्वारा किए गए तथा एक-एक यज्ञ में एक-एक गोत्र- नाम अग्रोहा के निवासियों को ऋषियों द्वारा प्रदान किए गए । आपने यह भी व्यवस्था की कि एक गोत्र की शादी उसी गोत्र में नहीं होगी , बल्कि बाकी सत्रह गोत्रों में ही यह शादी अनिवार्य रूप से होगी। विवाह का संबंध न केवल दो व्यक्तियों से बल्कि दो परिवारों और दो समाजों से भी होता है। अतः गोत्र के बाहर अनिवार्य विवाह के कारण धीरे-धीरे अग्रोहा में सब लोग इस प्रकार से घुलमिल गए कि अठारह गोत्रों में भी कोई भेदभाव नहीं रहा ।
आपने यज्ञ करते समय तथा गोत्रों का नाम प्रदान करते समय जब यह देखा कि यज्ञ में पशु की बलि दी जा रही है तथा एक घोड़े को यज्ञ स्थल पर जब आपने करुणा भाव से देखा तो आपके हृदय में अहिंसा – प्रवृति प्रबल हो उठी तथा आपने यज्ञ में पशु- हिंसा को समाप्त करने का निश्चय किया । उस समय के परंपरावादी समुदाय द्वारा यज्ञ में पशु- बलि को बड़ा भारी महत्व दिया जाता था। ऐसे समुदाय ने पशु-बलि के बगैर किए जा रहे आपके यज्ञ को यज्ञ मानने से ही इनकार कर दिया तथा अठारहवें गोत्र- नाम को जो आप यज्ञ के माध्यम से प्रदान करना चाहते थे , उस गोत्र को भी गोत्र की स्वीकृति नहीं दी । परिणाम यह निकला कि यज्ञ अधूरा माना गया और अठारह की बजाय साढे़ सत्रह यज्ञों को मान्यता मिली । गोत्र भी अठारह के स्थान पर साढ़े सत्रह ही कहलाए । महाराजा अग्रसेन धारा के विपरीत अविचल खड़े रहे और उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अपनी आवाज को मंद नहीं होने दिया।
आपने अग्रोहा की जनता के बीच कुटुंब की भावना विकसित की । अग्रोहा की जनसंख्या उस समय एक लाख के लगभग थी । अगर कोई व्यक्ति दरिद्र अथवा बेघर हो जाता था, तब कुटुंब की भावना से समस्त अग्रोहावासी उसे एक ईंट और एक रुपया प्रदान करते थे । इस तरह उपहार स्वरूप मिली हुई एक लाख ईंटों से बेघर का घर बन जाता था और एक लाख रुपयों के एकत्र होने से वह निर्धन व्यक्ति समृद्ध हो जाता था और अपना रोजगार शुरू कर देता था। इस तरह आपने अग्रोहा के जन-जन में समृद्धि,भाईचारा और समानता का सूत्रपात किया।
अग्रोहा के निवासी अग्रवाल कहलाए तथा हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी उनके हृदय में अग्रोहा तथा महाराजा अग्रसेन के प्रति आदर भाव विद्यमान रहा । आज भी प्राचीन अग्रोहा के निवासी अग्रवाल कहलाते हैं । उनमें अठारह गोत्र तो हैं लेकिन गोत्रों के आधार पर न कोई भेदभाव है और न ही अपने गोत्र में शादी करने का प्रचलन है। एक ईंट एक रुपए के सिद्धांत के माध्यम से महाराजा अग्रसेन ने उनमें आर्थिक समानता तथा बंधुत्व- भाव का जो बीज बोया था, वह फलदार वृक्ष के रूप में देश के कोने कोने में देखा जा सकता है। माँसाहार से भी अग्रवाल समाज आज भी कोसों दूर है ।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99 97 61 545 1

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