गर्व की बात
**** गर्व की बात ****
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ये बहुत गर्व की बात है,
इंसानियत मेरी जात है।
धर्म की आड़ में चुप हैं,
यही तो शर्म की बात है।
चाहे छाये काले बादल,
तारों भरी चाँदनी रात है।
रुको जरा दिल थाम के,
अभी तो ये शुरुआत है।
बजती रही शहनाइयां,
बेरंग लौटी ये बारात है।
मनसीरत मना मत कर,
स्याही से भरी दवात है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)