गर्मी
सूरज तो लगता है अब जवान हो गया।
झुलसाये यूँ मानो पहलवान हो गया।।
नदी नाले भी अपना वजूद हैं खोने लगे।
पशु पक्षी इन्सान सब परेशान हो गया।।
धरती के लब तो फटे रह गये प्यास से।
पसीने से लहूलहान हर इन्सान हो गया।।
प्यासों की कतारें लगी हैं जगह जगह पे।
पानी को पाने वास्ते सब हैवान हो गया।।
किसानों की तो तुम मत पूछो परेशानियाँ।
निगाह तो उनका सीधा आसमान हो गया।।
अमीरों को मयस्सर है आराम हर तरह से।
ग़रीबों का घर तो मानो क़ब्रिस्तान हो गया।।