✍गरीब भी अमीर भी अब पकौड़ा खाएगा✍(चाय-पकौड़ा श्रृंखला कविता क्रमांक-01)
चाय से जुड़े थे इसलिए कि जोश आएगा,
काला धन था जो स्विस में वो भी आएगा,
हाय! न सोचा था कि घर भी बिक जाएगा।
गरीब भी अमीर भी अब पकौड़ा खाएगा ।।1॥
एक्ट ऑन ईस्ट पॉलिसी पर ज़ोर आएगा,
नोटबंदी से कालाधन खुद बाहर आएगा,
हाय! यह कैसा मातम सा छा जाएगा,
गरीब भी अमीर भी अब पकौड़ा खाएगा ॥2॥
सोचते थे कश्मीर में कुछ नया आएगा,
370 होगी खतम, आतंक न छा पाएगा,
हाय! तिरंगा न फहरा के, तन से लिपट जाएगा,
गरीब भी अमीर भी अब पकौड़ा खाएगा ॥3॥
सैस का कीड़ा खून को चूस जाएगा,
जीएसटी का अजगर छोटे धंधो को निगल जाएगा
हाय! धनुआ भी काम-धन्धा अब कहाँ पाएगा,
गरीब भी अमीर भी अब पकौड़ा खाएगा ॥4॥
कौशल भी बातों में उलझ जाएगा,
युवा इस देश का भगवा कब तक फहराएगा,
हाय! नौकरी न करके अब पकौड़ा बनाएगा,
गरीब भी अमीर भी अब पकौड़ा खाएगा ॥5॥
अच्छा दिन कब तक आ पाएगा,
कब तक यह वादा जी को जलाएगा,
हाय!क्या भारत ऐसे जगदगुरु बन पाएगा,
गरीब भी अमीर भी अब पकौड़ा खाएगा ॥6॥
(पद क्रमांक-5 में भगवा को कविता का रूप देने के लिए प्रयोग किया गया है। प्रथमतः बता दूँ कि भगवा फहराना भारतीय नागरिक की नैतिक ज़िम्मेदारी है)
*****अभिषेक पाराशर****