गरीब का पेट
बड़ा जालिम होता है
गरीब का पेट
नहीं देता देखने
सुन्दर-सुन्दर सपने
गरीबी के दिनों में
छीन लेता है वह
सपना देखने का हक
जब कभी
देखना चाहती है आंख
सुंदर सा सपना
मागने लगता है पेट
एक अदद सूखी रोटी
आँँख ढूँँढ ने लगती है तब
इधर उधर बिखरी जूठन
और फैल जाते हैं हाथ
मागने को निवाला
गरीबी के दिनों में
दूसरों के सम्मुख फैले हुए हाथ
सपना देखती आँँख के
मददगार नहीं होते कभी
इसलिए भूखे पेट
कभी नही होता आँँख को
सपने देखने का साहस
सपना देखने के लिए
जरूरी है पेट का भरा होना
– लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’