गरीबी……..
गरीबी लाचार बना देती है ।
अपनों से दूर करा देती है ॥
तंग वस्त्रों से झलकती काया,
अपने ही नजरों में जार-जार हुए,
करते है दिन रात कड़ी मेहनत,
टुकड़े-टुकड़े रोटी के मोहताज हुए,
वैश्वीकरण की अर्थव्यवस्था में
बेरोजगारी असहाय बना देती है।
अपनों से दूर करा देती है ॥
टुकड़ों पर जीने का आदि
मन बेमन, तन फटेहाल हुआ
बहकती नजरें, बिक गया ईमान
निर्लज आंखों से दो चार हुआ
घुटन भरी यह जीवित दशा
जीवन अभिशाप बना देती है ।
अपनों से दूर करा देती है ॥
फुटपाथ पर बीतते बचपन
सर्द-रात में ठिठुरती काया….
गाली, मार सदा ही मिलती
सर पर नहीं अपनों की साया
तिल-तिल कर प्रतिपल मरना
मासूम जीवन खाक बना देती है।
अपनों से दूर करा देती है ॥
न शान हमारी पगड़ी होती
न इज्जत हमारी होती है
माँ की गोद में, भूखे बच्चे
श्वान संग रोते देखा है
दिल में चुभन, आँखों में आँसू
इंसान को निस्सहाय बना देती है
अपनों से दूर करा देती है ॥
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