गरीबी की चिंता (कविता )
गरीबी की चिंता
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नहीं नहीं यह देह प्रदर्शन,
गलती नहीं गोरियों की ।
करी गरीबी ने ही हालत,
खस्ता युवा छोरियों की ।
कोई चारा नहीं बचा है,
किससे मदद आज माँगें।
फटी जींस में दिखा रहीं हैं,
बेचारी अपनी जाँघें।
पूरा पूरा कुछ भी देखें,
विचलित कभी न होता मन।
पर ऐसे भग्नाशेषों से ,
शांत चित्त में हो कंपन ।
कुछ मनचले दूर दृष्टि से ,
नजर गड़ाए हैं इनपर ।
लक्ष्य असंभव पर मनसिज का,
चाप चढ़ाए हैं इन पर ।।
धर्म और ईमान इसी से,
मिले जा रहे गारत में, ।
भगवन इससे अधिक गरीबी,
और न देना भारत में ।
गुरू सक्सेना