गमे दर्द नगमे
गमे दर्द नगमे
मिलता रहा गम- ए दर्द जिंदगी में
दर्द में भी गुनगुनाती रही
उठता रहा धुआं सीने में
और मैं खुद को जलाती रही
खुदगर्जी की महफिल में
हर बार यूं रुसवा रही
की बार-बार खुद को ही में मानते रही
हर बार दिल तोड़ा गया
तन्हा फिर मुझे छोड़ गया
फिर भी गमों की महफिल सजती रही ख्वाब भी मेरे रूठे
सपने भी मेरे टूटे
सदा दिल तड़पता रहा
मगर फिर भी रंगों सी बहती रही
मिलता रहा ग़म-ए दर्द जिंदगी में
दर्द में भी गुनगुनाती रही
जिंदगी का साथ मैं सजाती रही