गम के साये
******गम के साये********
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मेरे मन अंदर यह ख्याल आए
जिन्दगी में क्यों हैं गम के साये
खुदा ने क्यों धूप – छांव बनाई
खुशी के साथ-साथ दी तन्हाई
क्यों निज हो जाते यहाँ पराये
जिन्दगी मे क्यों हैं गम के साये
फैंसले ना होते कचहरी में
बरसती बरसात दोपहरी में
नीला गगन ना बादल छाये
जिन्दगी में क्यों हैं गम के साये
पल में बिगड़ जाएं सारे रिश्ते
उजड़ जाएं निलय बसते बसते
मन में ऐसे क्यों विचार आयें
जिन्दगी में क्यों हैं गम के साये
दिल का दुलारा छोड़ जाता है
चला गया वापिस ना आता है
फिर क्यों ये रिश्ते नाते बनाये
जिन्दगी में क्यों हैं गम के साये
सुखविंद्र अकेला महसूस करें
साथ नहीं जाए जब कूच करे
प्रेम – बंधन में क्यों बंधते जाये
जिंदगी में क्यों है गम के साये
मेरे मन अंदर यह ख्याल आये
जिन्दगी में क्यों हैं गम के साये
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)