गम के छाये बादल खुशी की धूप खिली
गम के छाये बादल खुशी की धूप खिली
हुई मेहरबान जिंदगी खिली कली कली
वीरान ए जिंदगी , गमों की बरसात थी
मिले जो तुम खुशियों की सौगात मिली
जो अपने थे कभी,सभी अन्जाने हैं हुए
गैरों ने थाम लिया,नई शुरुआत है मिली
अब से पहले,जुल्मोसितम की हद ना थी
रहबर बन आए हो,बुरी खड़ी गई है टली
जिंदगी हताशा भरी,तन में हरकत ना थी
जीने की है चाह,जीवन की राह है मिली
खुद को खुद से ही खुद अलग कर बैठे
खुद का खुद से मिलन की है बयार चली
सिमट गए हम यूँ मौत की बस राह में थे
दस्तक दी जिंदगी नई है कायनात मिली
दोस्त करीबी था ,दुश्मन सा काम किया
जख्मों को शांत करने की जमात मिली
गम के छाये बादल खुशी की धूप खिली
हुई मेहरबान जिंदगी खिली कली कली
सुखविंद्र सिंह मनसीरत