गमो का बोझ
गमो का बोझ जब
दिल से उठाया न गया
आंखों से अश्कों का राज़
भी छुपाया न गया ।
दर्दे दिल चाह कर भी
किसी को बताया न गया
जख्म दिया था जिसने
नाम उसका जुबां पे लाया न गया ।
रोशनी प्यार की कम थी
बुझते दीयों को जलाया न गया
कसूर शायद हमारा ही था
जो वादा हमसे निभाया न गया ।
गुजरा नही रूठा था कोई
आवाज दे के वापस बुलाया न गया
जिन्दगी रोज गुजरती रही
अहं हमसे दबाया न गया ।।
राज विग