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31 Jan 2017 · 1 min read

गज़ल

न छुपा मुझे तु कहीं, मैं कभी छुप न पाऊँगा,
दरिया हूँ मैं, एक उम्र के बाद रुक न पाऊँगा !

तु समेट लें यादों में बस, मुट्ठी में बान्ध ना मुझे,
मैं खुशबू ए गुलाब हूँ कि कहीं भी छुप न पाऊँगा !
हक तेरा ही नहीं हूँ मैं, कई और भी हैं फर्ज मेरे,
जिद न कर मेरे साथ की, मैं अभी रुक न पाऊँगा !

लम्हा हूँ मैं गुजरता हुआ, कि मेरा कोई ठौर नहीं,
बस जी लें एक पल मुझे, कि फिर रुक न पाऊँगा !

इक बूँद हूँ बारिश की मैं, तु पी लें मुझको एक दम,
जो गिरा जमीन पर तो मैं, कभी भी उठ न पाऊँगा !
:- © राजेंद्र जोशी

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