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26 Jul 2017 · 1 min read

गज़ल

करने रजनी को धवल शीतल,
रात भर तारे नभ में हैं चमकते ।

विरह में बेचैन सारे आशिक बस करवटें हैं बदलते ।
टकटकी लगाए टुकुर-टुकुर प्रिय को हैं निहारते।

कभी प्रेयसी के लब हैं काँपते
और छिप कर नैना​ हैं सिसकते।

दिन रैन अश्रु मोती बन झरझर झरने से झरते
आँखों से सुरमा काजल गालों पर आ पसरते ।

हर पल नीलम सब आशिक हैं प्रेम अग्नि में जलते
कुछ स्वप्न तो पूरे होते, कुछ अरमान मन में है सुलगते।

नीलम शर्मा

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