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18 Jan 2017 · 1 min read

गजल

“रोज-रोज ख्वाबो मे आना छोड दो
होठो पे नये गीत गुनगुनाना छोड दो,

नाकाम है तुम्हारी कोशीशे सारी यहा
हर बार तुम ये इश्क जताना छोड दो,

नजरअंदाज करती रही मेरे इश्क को
अब यह झुठा स्वांग रचाना छोड दो,

नही रहा अब इश्क मुकम्मल तुम्हारा
बेवजह यूं ही तुमहक जताना छोड दो,

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