गजल
राज राज ही रहे न है उन्हें सबर।
लीक आजकल मेरी वो कर रहे खबर।।
लिख रहा हूं विश्व का भविष्य देख कर,
वो मिटा रहे हैं ले के हाथ में रबर।
चांद को भी राहु के समान ढक रहे,
खोदते हैं इस तरह हमारी वो कबर।
दिख नहीं रहा है दूर-दूर आदमी,
स्यार बन गया है पर बता रहा बबर।
जिंदगी को दांव पर लगायें अर्थवश,
दूसरे के काम में करे लबर लबर।
देश प्रेमी खुश हुए जिगर को बेचकर,
घूमते हैं हाथ में लिये हुए तबर।।
—– डॉ.सतगुरु प्रेमी