??◆बोले बहुत पर◆??
बोले बहुत मगर प्यार जताना न आया।
दिल में फूल थे ख़ुशबू बिखराना न आया।।
मन के तसव्वुर बहारों से कम न थे।
मंज़िल पता थी सफ़र सुहाना न आया।।
इशारों में कितना समझाया उसने मुझे।
हम ही पागल थे अनुमान लगाना न आया।।
आँखों में सिमटे कितने हसीं ख़्वाब थे।
एक ख़्वाब को भी,आँसू ढ़लकाना न आया।।
चलते-चलते सफ़र में रात हो गई मगर।
राह में चिराग़े-मोहब्बत भी जलाना न आया।।
कमियाँ औरों की गिनते रहे ताउम्र हम।
अपनी कमी को मगर हमें मिटाना न आया।।
गीत हज़ारों लिखे हैं हमने मोहब्बत के।
एक गीत भी मगर हमें गुनगुनाना न आया।।
दर्द की दास्तां कितनी लम्बी है दोस्तो।
दर्द छिपाने का मगर सिर्फ़ बहाना न आया।।
मेरे परवर दिग़ार मुझे माफ़ करना तू।
मैं भूलता रहा तुझे पर तुझे भुलाना न आया।।
“प्रीतम” तेरी मोहब्बत एक सच्ची यहाँ।
मुझे क्यों एक त्याग-विश्वास जताना न आया।।
**********
**********
राधेयश्याम….बंगालिया….प्रीतम….कृत