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29 Dec 2018 · 1 min read

गंगा की व्यथा

मुझे धरती पर लाना भगीरथ का अरमान था
अपने पूर्वजों के प्रति उसके दिल में सम्मान था
ब्रह्मा जी आज्ञा से उतर आई धरा पर
करना जन जन का कल्याण था।

सदियों से करती आई लोगों का उद्धार
शस्य श्यामल मेरे जल से हुआ है ये संसार
पर आज बहुत कष्ट में हूँ घुट रहा है दम
कोई तो होता धरा पर जो सुने मेरी पुकार।

मेरी निर्मल काया आज इतनी मलिन हो गई
अब में गंगा नहीं गन्दा बनकर रह गई
लगता है अब मेरा जाना ही बेहतर है
मेरे बेटों को मेरी जरूरत न रह गई।

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 447 Views
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