प्रीत की चादर
बदली ने ओढ़ प्रीत की चादर , भू को आज भिगोया है
और धरा ने फैला बाहें, बूंदों को सीने में पिरोया है …………..
नाचे मोर पपीहा गाए,झूम झूम सावन हरसाये
एक जोगन ने आँखों में ,विरहा राग सँजोया है …………..
क्रन्दन ये उर की ज्वाला,तेरे नाम की जपती माला
पीड़ जिया की देख के उसकी,नील गगन भी रोया है …………..
झर-झर, निर्झर बरसा पानी, भूल सत्य मन करता नादानी
सूखे आंचल में उसने अपनी, आस का अंकुर बोया है …………..
युग बीते मेरी क्षुधा अधूरी, जैसी भी हूँ कृति मैं तेरी
काहे देई मोहे जन्मन फेरी, हूँक कहे तू क्यों सोया है …………..
तू जाने का प्रीत हमारी, मैं का जानूं प्रीत तिहारी
तेरी ही इच्छा पाई लगन, माणिक ज्ञान पिरोया है …………..
यदि तेरी मैं बन पाऊं, अन्त श्वांस मैं तुझमें समाऊँ
तू स्वामी अन्तर्यामी, श्रीं चरणों में खुद को धोया है …………..
…………………………………………………………………