ख्वाहिशें
क्या ख्वाहिशें ?
क्या तमन्ना थी ?…
उन निगाहों में भी अरमान थे,
आरजू भी नेक थी,
खोजती कुछ अनेक थी,
गिरती हुई लहरों से चोट भी अजीब थी,
न दर्द था, न गम था,
सफर भी कितना कम था,
खोजती हुई मंजिल,
एहसास भी रम था,
गुजारते थे दिन,
अंधकार कब गुजर गए ।
क्या ख्वाहिशें?
क्या तमन्ना थी?……..(१)
हृदय में बसी थी,
मन भी स्थिर था,
औषधि की खोज में,
तन्हाँ भटकते थे,
यह आरजू भी उनकी थी,
ये ख्वाहिशें भी उनकी थी,
हर पल जब तड़पते थे,
सवालों में उलझते थे,
न चेहरे में मुस्कान थी,
न जिंदगी परेशान थी।
क्या ख्वाहिशें?
क्या तमन्ना थी ?…….(२)
उठते हुए सैलाबो में,
हकीकत भी अनजान थी,
खुद भी न पूरे थे,
न आरजू अधूरी थी,
तन में न मन था,
मन में न वश था,
सुलझती न ख्वाहिशें,
सीमटती न ख्वाहिशें ,
जिंदगी के हर मोड़ पर ,
होती है ख्वाहिशें ।
क्या ख्वाहिशें ?
क्या तमन्ना थी ?…….(३)
#बुद्ध प्रकाश , मौदहा