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2 May 2021 · 1 min read

खौफ़ का हर दिल में डेरा हो गया है

खौफ़ का हर दिल में डेरा हो गया है
आदमी कितना अकेला हो गया है

घुट गई है साँस आकर तन के अन्दर
दर्द का दिल में बसेरा हो गया है

स्वार्थ में खोता रहा इंसानियत जो
आदमी वो बेसहारा हो गया है

यदि सुबह के भूले हो घर लौट आओ
अब जरूरी ये समझना हो गया है

देखकर हालात अब इस ज़िन्दगी के
मर चुका ईमान जिंदा हो गया है

रात लम्बी है सवेरा फिर भी होगा
सोचकर दिल में उजाला हो गया है

‘अर्चना’ ये किस तरह तुम को बताए
ज़िन्दगी पर गम का साया हो गया है

01.05.2021
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

2 Likes · 3 Comments · 266 Views
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